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कैसा जमाने का चलन - लेखनी दैनिक प्रतियोगिता

नमन मंच
आ. साथी गण, कवि लेखक,
सभी को *नमस्कार*
*सुप्रभात*
कविता पसंद आए,
तो लाईक करके अपनी प्रतिक्रिया अवश्य दीजिए।

कैसा जमाने का चलन
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जमाने का चलन कैसा हो गया !
दिखावा इंसानियत से बढ़कर हो गया! 
गरीब को दो रोटी, 
एक निवाला देकर,
महंगा उसे भुनाना हो गया।
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आज सभी को पड़ी है,
झूठी साख बढ़ाने की,
पर इसका तरीका तो देखो,
कितना बेमुरव्वत,
बेशर्मी भरा हो गया।
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दया, मदद की यहाँ नहीं छिपी है भावना,
प्रदर्शन करना ही,
बस एक बहाना हो गया।
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मदद करो किसी गरीब की, 
सहायता किसी जरुरतमंद की,
सच्चे दिल से पुण्य कमा लो यारो,
बहाना इसे दिखावे का ना बनाओ यारो,
ईश्वर को खुश कर लो,
 गरीब की मदद करके,
परलोक अपना संवार लो यारो।
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शोभाशर्मा , छतरपुर, म. प्र.से।

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